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Online classes and girls

ऑनलाइन क्लासेज़ और लड़कियाँ
Online classes and girls
…by Sanghya Upadhyay

 

अपनी क्लास के ठीक समय पर ऑनलाइन होती हूँ। क्लास चल रही है। और अब जब क्लास ख़त्म होने में पाँच मिनट बाक़ी हैं, एक लड़की जॉइन करती है। मैं इतनी देरी का सबब पूछती हूँ। वह सबकी उपस्थिति में कहती है, नेटवर्क प्रॉब्लम।

दस मिनट बाद व्हाट्सऐप पर उसका मैसेज आता है “मैम, सॉरी, मैं ऑनलाइन क्लास नहीं कर सकूँगी। यह सुबह घर के काम का टाइम होता है।”
मैं पूछती हूँ कि अगर तुम कॉलेज में होतीं इस वक़्त, तो भी घर का काम हो रहा होता न? वह जवाब देती है कि हो रहा होता, लेकिन अब मैं घर में हूँ। और जब मैं घर में हूँ, तो घर का काम करने के बजाय एक घंटा कोने में बैठी मोबाइल हाथ में लिए क्या कर रही हूँ, यह बात कोई नहीं समझता। घर में होने का मतलब घर का काम करना है।

एक लड़की मैसेज करती है कि मैम, मेरी बेटी बहुत छोटी है, मुझे उसे देखना होता है। क्लास नहीं कर सकूँगी।
मैं कहती हूँ, अभी तो सब घर में हैं। कोई भी देखभाल कर लेगा बच्ची की।
वह कहती है, नहीं मैम। घर में हूँ, तो मेरे सिवा कोई नहीं देखेगा उसे।

एक नेत्रहीन लड़की फ़ोन करके कहती है, मैम ब्रेल में किताबें नहीं हैं यहाँ घर में। और घर में मेरे लिए किताब पढ़ देने की फ़ुरसत नहीं है किसी के पास। क्या करूँ?
मैं रातों की ख़ामोशी में उसके लिए कुछ रिकॉर्डिंग करती हूँ। कुछ अन्य छात्राओं से कहती हूँ। वे उसे रिकॉर्डिंग भेजती हैं।

एक लड़की मैसेज करती है कि मैम, वह और वह अब क्लास नहीं कर सकेंगी। उनका मोबाइल रीचार्ज नहीं हो सकता। उनके पापा ने मना कर दिया है, पैसे नहीं हैं।
मैं नंबर लेकर रीचार्ज कराती हूँ। तो एक के पिता फ़ोन पर कहते हैं, हमारी बेटी को बिगाड़ो मत। मेरी बात सुने बिना फ़ोन काट देते हैं।

एक लड़की क्लास शुरू होने के तीन-चार मिनट बाद ही चली जाती है। शाम को फ़ोन पर फुसफुसाती आवाज़ में कहती है कि मैम, एक ही कमरे का घर है। क्लास के वक़्त सब वहीं होते हैं। कोई भी किसी काम के लिए कह दे, तो मना नहीं कर सकती और ध्यान भी बँटता है, इसलिए…

एक लड़की मैसेज करती है, मैम, मैं इतने बजे वाली क्लास नहीं कर सकूँगी। मैं कारण पूछती हूँ, तो वह बताती है कि उसी समय भाई की भी ऑनलाइन क्लास है। एक ही स्मार्ट फ़ोन है परिवार में। तो भाई का हक़ पहला है।

एक लड़की अपनी सहेली से मैसेज भिजवाती है कि मैम से मेरे पापा के फ़ोन पर बात कराना। वे फ़ोन नहीं दे रहे मेरा। कह रहे हैं, सारा दिन फ़ोन लिये बैठी रहती है।

एक लड़की शुरू में ही कह गयी थी, मैम, हम ख़ुद पढ़ लेंगे। गाँव में नेटवर्क की बहुत समस्या होती है।

एक लड़की गाँव से आकर अपने भाइयों के साथ यहाँ महानगर में रहती है, पर उसके पास फ़ोन नहीं है क्योंकि लड़की के पास फ़ोन नहीं होना चाहिए उसके भाइयों के मुताबिक़। वह क्लास नहीं कर सकती।

एक लड़की फ़ोन करके कहती है, मैम, मैं असाइनमेंट मेल नहीं कर सकती। आपको फ़ोन पर पढ़कर सुना दूँ? मैं सुन लेती हूँ।

एक लड़की…

एक लड़की…

इस एक लड़की को एक मत जानिए। जाने कितनी लड़कियाँ इस एक में शामिल हैं।

ऑनलाइन पढ़ने-पढ़ाने के पक्ष में तर्क देने वाले यह समझ ही नहीं पायेंगे, या शायद अच्छी तरह समझते होंगे कि कौन ऐसी शिक्षा लेने में सक्षम है। अभी थोड़े दिन पहले हम महँगी शिक्षा के ख़िलाफ़ मुफ़्त शिक्षा के लिए लड़ रहे थे। अब यह एक नया मोर्चा बन रहा है।
मैं चूँकि लड़कियों को पढ़ाती हूँ, इसलिए उनकी समस्याएँ लिख दीं। निश्चित ही, लड़कों की भी समस्याएँ होंगी।
लेकिन लड़कियों की पढ़ाई के रास्ते में कितनी कितनी कितनी बाधाएँ हैं, इसका अंदाज़ा लगायें।
कॉलेज आने के लिए बाहर निकलना उनके लिए कितने कामों का प्रबंधन करके निकलना है, यह समझिए। घर लौटकर उसी बचे समय में उन्हें घर की सब जिम्मेदारियाँ पूरी करनी होती हैं और पढ़ाई भी करनी होती है, असाइनमेंट भी बनाना होता है। कितनी लड़कियाँ दो लेक्चर के बीच गैप में यह काम करती हैं कि घर में समय नहीं मिलेगा। और वैसे भी, कॉलेज के लिए घर से बाहर निकलना साँस लेने जैसा नहीं क्या?
और अब जब वे घर में हैं, तो कितने परिवार उनकी ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर संजीदा और संवेदनशील हैं? उनकी आर्थिक स्थिति और पारिवारिक परिवेश उन्हें इस तरह की पढ़ाई की कितनी सहूलियत देते हैं?
कितने सवाल हैं और अनसुने हैं…

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